आज हम एक ऐसे पर्व के साक्षी हैं, जो न केवल भाई-बहन के रिश्ते का उत्सव है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं, त्याग, विश्वास और एक-दूसरे की रक्षा के वचन का प्रतीक है—यह है रक्षाबंधन।
रक्षा का अर्थ है – संरक्षण, और बंधन का अर्थ है – बंधन में बंधना।
यह केवल एक धागा नहीं, बल्कि भावनाओं का सबसे मजबूत धागा है, जो हमें जोड़ता है जन्म-जन्मांतरों तक।
इतिहास और प्रेरणादायक कथाएँ
यदि हम इतिहास के पन्ने पलटें, तो रक्षाबंधन की अनेक प्रेरणादायक कथाएँ मिलती हैं—
महाभारत में द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की उँगली से रक्त बहता देखा, तो अपने आँचल से कपड़ा फाड़कर उनकी अंगुली पर बाँध दिया। वह क्षण मात्र कपड़ा बाँधने का नहीं, बल्कि अनंत रक्षा वचन का क्षण था। कृष्ण ने जीवनभर द्रौपदी की लाज की रक्षा की।
इतिहास में भी प्रसिद्ध है—चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को रक्षा सूत्र भेजा, और उसने अपने धर्म और वचन का पालन करते हुए रानी की रक्षा की।
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आधुनिक संदर्भ में
आज रक्षाबंधन केवल भाई की बहन की रक्षा का पर्व नहीं रहा, बल्कि यह परस्पर सुरक्षा और सम्मान का संदेश देता है।
आज के युग में बहन भी भाई की रक्षा करती है—सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और नैतिक रूप से।
यह पर्व हमें सिखाता है कि—
1. रिश्ते विश्वास से जीते जाते हैं, ताकत से नहीं।
2. प्रेम और त्याग ही बंधन को अटूट बनाते हैं।
3. सुरक्षा का अर्थ केवल संकट से बचाना नहीं, बल्कि सम्मान, प्रोत्साहन और सहारा देना भी है।
समाज के लिए संदेश
यदि हम इस पर्व की भावना को अपने परिवार से आगे बढ़ाकर समाज तक पहुँचाएँ—
तो हर कोई हर किसी की रक्षा करेगा, किसी के साथ अन्याय नहीं होगा, स्त्रियों का सम्मान होगा, और समाज में एकता की डोर और मजबूत होगी।
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अंत में
भाइयों, जब आप बहन की कलाई पर राखी बंधवाएँ, तो केवल “मैं रक्षा करूँगा” कहकर न रुकें, बल्कि यह भी संकल्प लें—
“मैं तुम्हारे सपनों की रक्षा करूँगा, तुम्हारे सम्मान की रक्षा करूँगा, तुम्हारे अधिकारों की रक्षा करूँगा।”
और बहनें भी यह वचन दें—
“मैं तुम्हारे मार्गदर्शन, प्रेरणा और सुख-दुख में सदा साथ रहूँगी।”
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रक्षाबंधन का यह पवित्र अवसर हमें याद दिलाता है कि संसार का सबसे सुंदर बंधन वह है, जो विश्वास, प्रेम और त्याग से बंधा हो।
धन्यवाद।
“रक्षा-सूत्र, प्रेम का अटूट दस्तावेज़ है।”