प्रभु चरित सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥”-
वाल्मीकि रामायण कथा महोत्सव – चतुर्थ दिवस
जिला संवाददाता परभणी—
रामायण में श्रीराम और लक्ष्मण दोनों भाई सदा साथ-साथ दिखाई देते हैं। यद्यपि श्रीराम और भरत का प्रेम अवर्णनीय है, फिर भी संपूर्ण रामकथा में वे प्रायः अलग-अलग दिखाई देते हैं। इसका गहरा आध्यात्मिक कारण है।
शास्त्रों में राजा दशरथ को वेद का अवतार माना गया है। रानी कौशल्या को “ज्ञान”, कैकेयी को “कर्म” और सुमित्रा को “भक्ति” का स्वरूप बताया गया है।
“ज्ञान शक्तिश्च कौशल्या, सुमित्रा उपासनात्मिका।
क्रिया शक्तिश्च कैकेई, वेदो दशरथो नृपः॥”
वेद की तीन ऋचाएं तीन रानियां
वेद ही – दशरथ
इसी प्रकार दशरथ के चारों पुत्र – वेद के चार पुरुषार्थ है।
शत्रुघ्न – अर्थ,भरत – धर्म
लक्ष्मण काम (कामना, इच्छा)
श्रीराम – मोक्ष का प्रतिक है।
हमारे जीवन में “अर्थ” को “धर्म” के साथ और “कामना” को “मोक्ष” के साथ जोड़ा गया है। इसलिए –
लक्ष्मण सदा राम के साथ
शत्रुघ्न सदा भरत के साथ रहते हैं।
श्रीराम और भरत में अत्यंत प्रेम है, किंतु वे सदा भौतिक रूप से अलग रहते हैं।
क्यों?
क्योंकि यह संसार एक “भवसागर” है – एक समुद्र है।
इस सागर के दो तट हैं-एक ओर धर्म (भरत),दूसरी ओर मोक्ष (राम),
साधक की यात्रा धर्म से प्रारंभ होकर मोक्ष तक पहुँचती है।
इसीलिए भरत और राम अलग रहते हैं।
राम-वनवास की व्याख्या
पं. निर्मल कुमार शुक्ल जी ने मार्मिक भाव से बताया कि-
राम, लक्ष्मण और भरत तीनों ने अपने-अपने धर्म का पालन किया।
*श्रीराम ने सामान्य धर्म का पालन किया-
जैसे माता-पिता की सेवा, आज्ञा पालन, सत्य वचन, ममता, करुणा, उदारता, प्रजा-रक्षण, समाज-कल्याण, दुखियों की सेवा आदि।
उन्होंने इन्हीं कर्तव्यों को श्रेष्ठतम मानते हुए जीवनभर इनका पालन किया।
*लक्ष्मण ने विशेष धर्म का पालन किया–
वे राम को ईश्वर स्वरूप मानते हैं।
उनके लिए सबसे बड़ा धर्म – राम की सेवा है।
माता-पिता, गुरु सभी तब तक मान्य हैं जब तक वे राम के अनुकूल हैं।
यदि कोई राम का विरोध करे, तो वे उसका प्रतिकार करने को तैयार हो जाते हैं चाहे वह कैकेई हो या दशरथ।
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि-
राम के वनवास से क्षुब्ध होकर लक्ष्मण ने माता-पिता के आदेश को ठुकराने तक की ठान ली थी।
वे कैकेई और दशरथ की हत्या तक करने को तत्पर हो गए थे।
अयोध्या की सेना से युद्ध कर राम को राजा बनाने के लिए भी तैयार हो गए थे।
परंतु राम ने उन्हें शांत किया और स्वयं वन जाने का दृढ़ निश्चय बताया।
राम ने वृद्ध पिता की सेवा तथा प्रजा के हित हेतु लक्ष्मण से अयोध्या में रुकने का आग्रह भी किया।
पर लक्ष्मण ने सब कुछ – माता-पिता, पत्नी, गुरु, प्रजा – त्याग दिया और 14 वर्षों तक राम सेवा के लिए वन को चुना।
कथा की जानकारी–
यह रामकथा गंगा 7 अगस्त तक, प्रतिदिन दोपहर 3 से 5 बजे तक,
पेड़ा हनुमान मंदिर में प्रवाहित हो रही है।
*कथा आयोजक–
पं. श्रीराम तिवारी एवं पेड़ा हनुमान मंदिर भक्त मंडल ने सभी श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि सावन मास उपलक्ष्य मे चल रही रामकथा को अधिक से अधिक संख्या में पधारें और कथामृत पान करें।
आज की प्रमुख उपस्थिति–मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ के कुलपति, इंद्रमणि मिश्रा,
ओम प्रकाश उपाध्याय,नंदलाल सोनी,एड. रमेश शर्मा,प्रो. विजय मणियार,
योगेश तिवारी,निलेश तिवारी
नगर के अन्य गणमान्य महानुभाव उपस्थित थे।
रामकथा श्रवण से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम होता है।

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